मेरे पापा
मेरे पापा
मेरे पापा
तुम बरगद की सघन छाँव
जिसके आँचल में मेरा आशियाना
बहुत सुंदर और सुखद।
जो मेरे जीवन जीने का सबव
है पापा।
तुम्हारी छाँव में
पल कर बड़ा हुआ हूँ मैं।
तुम्हारे विचार, संस्कार से
सभलकर खड़ा हुआ मैं
फिर से नहीं बचपन
वहीं गोद मागता हूँ पापा।
बचपन से देखा है मैंने
तुम ही थे रोटी, कपड़ा ओर मकान
हमारी जरूरतें पूरी करते करते
होम कर दिये अपने अरमान।
इतना त्याग तो कोई
खुदा ही कर सकता है
तुम खुदा से भी बढ़कर हो पापा।
तुम्हारा स्वभाव है कितना निर्मल
झट से बात मान लेते हो मेरी
हो झूठी या फिर सही
मेरी किस्मत, मेरी तकदीर
हर मोड़ पर संभल बने हो तुम पापा।
पहचान हो, मेरा स्वाभिमान हो
मेरी जिंदगी की आन, बान, शान हो
तुम मेरी शक्ति हो
सृष्टि के निर्माण की अभिव्यक्ति हो
तुम अनुशासन, तुम प्रशासन हो पापा।
तुमने जो संस्कार के पर दिये हैं
घूमता हूँ सारा संसार, उन्हें फड़फड़ाकर
सीख थी जो तुम्हारी, कुछ कर गुजरने की
शायद इसीलिए मेरी राहों में
कोई मुश्किल नहीं आयी पापा।
खिलौने क्या, सारा बाजार
दिलाया था तुमने
अपनी हद ओर औकात से बढ़कर
मनमाना स्कूल, किताबें और कलम
सब दिलाया सारे जहाँ से लड़ कर
तुम मेरे रंग हीन जीवन के सतरंगी रंग हो पापा।
जब भी गलतियाँ की मैंने
तुमने कान पकड़कर समझाया
मैं रोया, तुम्हारी आँख भी नम हुई
फिर हँसकर मुझे गले से लगाया
तुम्हारा समझाना, डाँटना, संस्कार देना
मुझे आज समझ आया कि
मैं तुम्हारी परछायी हूँ पापा।
आपके वजूद से मेरा वजूद है पापा।