गीत- चाँदनी
गीत- चाँदनी
चंचला चपला किरण मृदु,
सुधा रस वर्षा रही है।
चांदनी छिटकी शरद की,
खिड़कियों से आ रही है।
देख चूनर आसमां की,
अनगिनत हीरे जड़े हैं।
मौन हैं पर्वत शिखर सब,
कर्मयोगी से खड़े हैं।
रातरानी भी हुलस कर,
धरा को महका रही है।
चांदनी छिटकी शरद की,
खिड़कियों से आ रही है।
इंद्रधनुषी भावनाएँ,
प्रीत के पल बुन रही हैं।
तोड़ बंधन रूढ़ियों के,
प्रेम गीता सुन रही हैं।
हृदय की लयबद्ध धड़कन,
गीत मधुरिम गा रही है।
चांदनी छिटकी शरद की,
खिड़कियों से आ रही है।
रास के पल खो रहे हैं,
बावरी हो गई राधा।
श्याम न आये अभी तक,
आ गई है कौन बाधा?
कभी बाहर कभी भीतर,
विकल मन, आ-जा रही है।
चांदनी छिटकी शरद की,
खिड़कियों से आ रही है।

