प्रेम कविता
प्रेम कविता
मैं कविता बुनता हूँ
शब्दो के गोले बनाकर
मैं बुनता जाता हूँ कविता
लम्बी-लम्बी लाइनों वाली
कि जैसे तुम..
ऊन के गोले बना
सलाई पर सलाई लगा
बुनती जाती हो स्वेटर
लम्बी बाजू वाला।
मैं पढता हूँ कहानी
एक ही लय मे
कि जैसे तुम पढती हो
रोजमर्रा की लिस्ट किचन से
एक ही साँस में
मैं लिखता हूँ नाटक
कमेडी लेकिन थोडा इमोशन
थोडा सा रोमांस लेकर
कि जैसे तुम
बनाती हो सब्जी
आलू, गोभी , प्याज
थोडी सी मिर्च
थोडा सा नमक लेकर
मैं देता हूँ कविता, कहानी, नाटक को
शीर्षक उनको
पूर्णता प्रदान करते हुए
कि जैसे तुम देती हो
माथे पर टीका मुझको
सम्पूर्णता प्रदान करते हुए।

