हां मैं नारी हूं
हां मैं नारी हूं
मैं घर की भी हूं बेघर भी
बैठाकर मंदिर में हुई जार जार भी
देवता बनकर कभी मैं पूजी गई
कभी हो गई मैं दरबदर भी
ओस से जब मिला मुझे आकार
बन गई कभी मैं गौहर भी
सब कुछ जलता जलता सा है
देखा है मैंने जोहर का मंज़र भी
कभी बनी में क्षत्राणी कभी बनी मैं धाय भी
रक्षा करके रण सपूतों का पूरा किया ममत्व भी
ख्वाहिशों के मेरे मिलती हकीकत नहीं
मतलब मैं उपजाऊ भी हूं बंजर भी
मुझ में है सागर सा धैर्य
तभी तो खो जाता मुझ में दरिया भी
मैं हूं वह मर्यादा की रेखा
जिसे तोड़ ना पाया कभी रावण भी
बनकर मीराबाई हुई प्रेम में पागल
हंसकर पी लिया विष का प्याला भी
नहीं है मुझको मोह खुद से
तभी तो हर रूप में प्रकृति ने मुझको ढाला भी
मुझ को कम में मत है आंको
मैं सीता भी हूं मैं ही चंडी भी
उठा लिया जब व्रत उद्धार का
ले आऊंगी संसार में प्रलय भी।