#बैरी चाॅंद
#बैरी चाॅंद
मन उपवन में सुरभित प्रणय प्रसूनों को खिला
महका गया तन- मन आज चांद मेरा बड़ा बैरी निकला
महके हुए तन- मन को मधुर प्रणय गीत सिखा
भ्रमर सा मन आकुल आज चांद मेरा बड़ा बैरी निकला
बड़ा गुरूर लेकर चले थे हम न रंगेंगे खुद को दीवानगी में
हमसे हमी को चुरा ले गया चांद मेरा बड़ा बैरी निकला
सोए थे पलकों को मूंद के हम तो 'नीर' रात में
स्वप्न में चुपके से आ गयाचांद मेरा बड़ा बैरी निकला
देखकर नीर भरे बदराचोरी- चुपके मन चला भींगने
हवा के रुख से कहीं ओर मुड़ गया चांद मेरा बड़ा बैरी निकला
मद भरे नैनों में मदिरा को नयन चले साथ लिए
मूंद अपनी पलकों को गुजरा वहचांद मेरा बड़ा बैरी निकला
'नीर' संभाले बैठे थे बरसों से जिस दिल को हम जतन से
बस एक पल में वह चुरा ले गया चांद मेरा बड़ा बैरी निकला
मन के समंदर में उठती लहरों को थाम रखा था 'नीर' मैंने
तोड़ तटबंध यादों का तूफान उमड़ा चांद मेरा बड़ा बैरी निकला।