शिक्षक
शिक्षक


जैसे किसान लहलहाती फसल देख हरषाता,
कैसे दिन-रात श्रम से सिंचित कर उन्हें पाता,
शिक्षक ज्ञान सुधा का अमृत पान कराता ,
संस्कृति संपदा में नित स्वाभिमान जगाता।
जैसे दीपक पथ को आलोकित कर इठलाता,
कैसे हवा से संघर्ष कर स्वयं जल जाता ,
नैतिक मूल्य की अमूल्य धरोहर सहेजता,
हर अज्ञान तिमिर ज्ञानदीप जगमगाता ।
जैसे चित्रकार भावों का चित्रांकन कर सुख पाता,
कैसे कोरे कागज पर तूलिका से रंग भर जाता ,
जैसे कुम्हार गीली मिट्टी से बर्तन बनाता ,
शिक्षक जीवन का नव अर्थ सिखलाता।
समर्थ रामदास बिन शिवाजी,
चाणक्य बिन चंद्रगुप्त,
द्रोणाचार्य बिन अर्जुन,
इतिहास चरित्र गढ़ता कौन ?
शिक्षक ना होते यदि जग में ,
ज्ञानशलाका थमाता कौन ?
गुरु पद अमिय अम्बु बिन सर में ,
राष्ट्रभक्ति के अंबुज खिलाता कौन?