कठपुतली
कठपुतली
सदियों से चंद बूंदें आंसूओं की
पलकों पर आ कर थमी है
मन में अनेक तुफान लिए
उत्पाल की तरंगें लिए
अपनी आवाज को दबा
मैं जी रही हूं,
कभी रोती हूँ, कभी हंसती हूँ
क्यों नहीं मैं तकरार करती ?
क्यों नहीं मैं अपने लिए लड़ती ?
क्यों नहीं मैं अपने लिए जीती ?
मेरी डोर किसके हाथ बंधी है
आज मैंने जाना
मैं एक कठपुतली हूं.....
हाँ, मैं एक कठपुतली हूँ....
प्रारब्ध की जीती जागती
कठपुतली।