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Resham Madan

Drama

4.8  

Resham Madan

Drama

कठपुतली

कठपुतली

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428


सदियों से चंद बूंदें आंसूओं की

पलकों पर आ कर थमी है

मन में अनेक तुफान लिए

उत्पाल की तरंगें लिए


अपनी आवाज को दबा

मैं जी रही हूं,

कभी रोती हूँ, कभी हंसती हूँ

क्यों नहीं मैं तकरार करती ? 


क्यों नहीं मैं अपने लिए लड़ती ?

क्यों नहीं मैं अपने लिए जीती ? 

मेरी डोर किसके हाथ बंधी है

आज मैंने जाना


मैं एक कठपुतली हूं.....

हा‌ँ, मैं एक कठपुतली हूँ....

प्रारब्ध की जीती जागती

कठपुतली।


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