शहर
शहर


मेरे शहर में शोर बे शुमार है,
यहां सांस में गीत है,
होठों पर ख़ामोशी लाज़वाब है,
यहां खूबसूरती भी एक राज़ है,
सादगी से होता श्रृंगार है,
मेरे शहर में शोर बे शुमार है,
यहां गंगा की बहती धारा है,
बन्धन को जोड़ता सिर्फ एक धागा है,
यहां झुकती पलको में इज़हार है,
किसी की आखों में सिर्फ इंतजार है,
मेरे शहर में शोर बे शुमार है,
यहां दियों से रोशन काशी के घाट है,
तो कही कोई जलता दिन रात है,
यहां हर दिन तीज त्यौहार है,
तो कही कोई दो निवालों का मोहताज है,
मेरे शहर में शोर बे शुमार है,
यहां किसी को धूप मिली,
किसी ने बारिश में राहत खोज ली,
यहां किसी की हर ख्वाहिश पूरी है,
तो किसी की दुआ बरसो से अधूरी है,
मेरे शहर में शोर बे शुमार है,
यहां पाप पुन्य को लेकर गहरी बहस है,
तो कोई धर्म से बंधा बेबस है,
यहां नजदीकियों में कैसी दूरी है,
ना जाने कितने किस्से कहानी आज भी अधूरी है।