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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama

मां-बापू की यादें

मां-बापू की यादें

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बहुत याद आ रही है मुझे बचपन की

बाते किया करता था में जब सच्चे मन की

पिता के कंधे पर घूमना

छोटी छोटी बातों पर रूठना


बहुत याद आ रही है पिता के दुलारेपन की

खिलौने के लिये रोना,

न दिलाने पर ज़मीं पर लौटना

बहुत याद आ रही है मुझे उस भोलेपन की


बहुत याद आ रही है मुझे बचपन की

पापा के डांटने पर,

मेरी पिटाई करने पर

मेरा रोटी खाना छोड़ देना


और मां तेरा वो मुझे मनाना,

बहुत याद आ रही है माँ तेरे ममतापन की

मेरा रात को वो डर जाना

मां तेरा वो लोरी गाकर सुलाना


बहुत याद आ रही मां तेरी

गोदी में सोने के सुहानेपल की

अब में बड़ा हो गया

मां तुझसे दूर हो गया


शादी कर में अलग हो गया

बहुत याद आ रही है माँ कुंवारेपन की

मेरे हर सांस में,

मां तेरा नाम लिखा है


मेरे खून के कतरे कतरे पर

बापू तेरा नाम लिखा है

बहुत याद आ रही मां-बापू

आप दोनों के निश्छल दुलारेपन की


बहुत याद आ रही है मुझे बचपन की

ये आपके प्यार की स्मृतियां

दिल पर गिराती है बिजलियां

बहुत याद आ रही है


मेरे दिल मे बसे मेरे भगवान

मेरे मां-बापू आपके भोलेपन की

बहुत याद आ रही है मुझे बचपन की।


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