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Bhawna Kukreti Pandey

Abstract Drama Tragedy

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Bhawna Kukreti Pandey

Abstract Drama Tragedy

बादल

बादल

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बादल सा होना

आसान नहीं होता

कभी दर्द बटोरने पड़ते हैं

कभी दर्द खुद ब खुद समा जाते है

दिल में सीने से लग के


किसी 

सूखी जमीन के

करीब से निकलते

भुरभुरे दर्द

की कराह रोक लेती है

पल दो पल,

न सोचते हुए भी 

अंजुलि उठा लेती है 

बेहद नरमाई से उन्हें 

और बस 

न चाहते हुए भी 

दिल के नाजुक कोने में 

रखना पड़ जाता है।

उन कराहों को।


ऊंचे पहाड़ों के

ठंडे दर्द

अपनी पुकार से बांध लेते है

रात दिन

और आगे जाने देने की शर्त 

पर मिल जाते हैं 

उनके भी सयाने कमसिन

दर्द के उलाहने।


पठार के आर्त नाद

तपती दोपहर में 

पसीने से लथपथ खुली देह

पर पसीने की बूंद में

भाप होते हुए 

एकत्र होने लगते हैं 

सबके ठीक बीचों बीच

अपनी सघन उपस्थिति

बताते हुए।

रेगिस्तान में 

रेत के

नाउम्मीदी से भरे 

खुश्क दर्द की 

दाह देते सीने 

दूर से बस 

ताकते रहते हैं

राह उनकी लेने की 

आस में।


दूर दूर तक 

फैले सागर के सीने में

होते हैं

जमाने भर से लाये

दुख दर्द पीड़ा

नदियों की सौगातों 

के रूप में

जिसे सूरज की

हथेलियों से उछाल कर

वह डाल देता है

अन्तस् में।

इन सबके 

भार को ढोते

गिरते पड़ते टकराते

उन्हें लिए लिए

घूमना होता है तब तक

जब तक असंभव

न हो जाये 

उनका खुद का

अस्तित्व।


समेटते बटोरते

सहेजते संभालते 

बस कोई एक दिन 

हताश होकर

खुद ही बिखर कर

बरस कर 

उन्हीं जगहों पर 

मिट जाते है,

गुम जाते है 

खत्म भी हो जाते है 

ये बादल।



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