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Jina Sarma

Abstract

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Jina Sarma

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खोया बचपन

खोया बचपन

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मैं बचपन को ढूंढ रहीं हूं 

बचपन की कहानियां हैं रस भरा,

जिस में होता था भरपूर कल्पना,

मन में आते सवाल लगातार,

कभी बनना है तितली, कभी वकील,

सब कुछ लगता अच्छा,

मन करता जल्दी बड़े होने की कामना,

सबको मेरी गलतियां भी प्यारी लगती,

पर अब बड़े होने पर हर ग़लती पर डांट मिलती 

बड़े होने का शौक जो था बचपन में

अब बड़े होने पर वो अच्छा नहीं लगता!

खेलने का समय नहीं 

काम काम और काम 

थोड़ी देर बाद उठूंगी 

यह सोचने का भी समय नहीं,

काश मैं बचपन को फिर ख़ोज पातीं!


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