कैसे
कैसे


सब कुछ बदलते हुए देख रही हूँ मैं: लोग, चेहरे, मौसम, समाज, और हिसाब की किताब तक।
तुझे लगता है ये सब पहली बार हो रहा है? पहले भी तकलीफ होती थी, पर अब?
अब क्यों अजीब लग रहा है, और ये बदलाव क्यों चुभने लगा है?
जेनरेशन बदल गई? या लोग बदल गए? या खुशियों से जलन होने लगी है?
कल और भी कुछ बदलेगा। झेल पाओगे? या फिर हर चीज़ पे अपने से शिकायत करते रहोगे?
हर उस इंसान और उस लम्हे का जो कभी था, लेकिन अब नहीं?
जीवन में बहुत कुछ सीखना है—अकेला
रहना और खुश रहना,
लेकिन शर्त यही है कि खुश रहना है अपने आप से।
कोई उम्मीद किसी से नहीं; न किसी इंसान से, न किसी मकाम से।
और याद रहे: मकान हो या इंसान, टूटने पर ही कुछ नया बनता है।
जब तक टूटोगे नहीं, जुड़ोगे कैसे? सीखोगे कैसे? हौसला कैसे आएगा? कैसे मैनेज करोगे सब कुछ?
तो ऊपरवाले पे यकीन रखो कि जो हो रहा है, उसके लिए तुम तैयार हो।
संभाल लोगे। ठीक है? चिंता मत करो, सब ठीक होगा—अपने हिसाब से हो या न हो,
लेकिन ठीक होगा।