मौसम की तरह
मौसम की तरह


वादे से अपने मुकरना नहीं था
मौसम की तरह बदलना नहीं था।।
इनकार से आप की एतराज कहाँ
मगर इकरार आपको करना नहीं था।।
मुकर जाना अगर फितरत में है
वादा इस तरह करना नहीं था।।
टूट जाते हैं वादे कभी कभी मगर
जानते हुए अंजान बनना नहीं था।।
फिर भी गांठ बांध रख लेते लोग
बिसरने का बहाना करना नहीं था ।।
बहलाने के लिये बहाने काफ़ी नहीं
निजी नज़र से निज गिरना नहीं था।।