छुपा सच
छुपा सच
सच्चाई छुप नहीं सकती झूठ के उसूलों से,
खुशबू आती नहीं कागजी नकली फूलों से।
सत्य हो सकता है किंचित ओट से बाधित,
जैसे सूर्य छिपता बादली गोद में मुकलित।
वैसे ही सत्य होता नहीं कभी कहीं विचलित,
कितना भी करें सच को झूठ तापित श्रापित।
झूठ की बदली के छिन्न-भिन्न होते ही उदित,
चारों दिशाएं सत्य के खुमार से होतीं लोहित।
छुपे सत्य की गर्जना सिंहनी हुंकार सी राजित,
झूठ लांछित धुंध कुहासी आवरण हो वाष्पित