समंदर की गुहार
समंदर की गुहार


राह रोके समंदर खड़ा, करता हर मानव से गुहार,
अपनी उन्नति, तरक्की के लिए, न करो जल-जीवों पर अत्याचार।
खुद को स्वच्छ रखते हो, हमारा संसार प्रदूषित करके,
क्या मिल जाएगा तुमको, अपनी शक्ति का दुरुपयोग करके।
एक समुद्र मंथन हुआ था, जिसका विष शिव जी ने पिया था,
अब जो मंथन होगा कभी, विष तो निकलेगा तब भी,
पर न कोई शिव आयेंगे,जो जहर पीकर नीलकंठ कहलाएंगे,
ये जो प्रदूषण हमें दे रहे हो, मंथन का जहर तुम्हें ही पिलाएंगे।
ना सोचो तुम बच जाओगे, मिटा कर अनेक जलीय प्रजातियां,
सम्भल जाओ समय रहते अभी, दूर करो हमारी भी चुनौतियां।
वरना वह दिन दूर नहीं, जब समंदर बरसाएगा अंगार,
देखते ही देखते समा जाएगा, समंदर में तुम्हारा सारा संसार।