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kanksha sharma

Abstract Tragedy

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kanksha sharma

Abstract Tragedy

अंतर्मन की यात्रा

अंतर्मन की यात्रा

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बना सकूँ जिससे अपनी पहचान,

वो नाम कहाँ से मैं लाऊँ?

जिसको हँस कर कभी गुजार सकूँ,

वो शाम कहाँ से मैं लाऊँ?

बयाँ करे जो दिल की दास्तान,

वो ज़ुबान कहाँ से मैं लाऊँ?

बाँट सकूँ जिससे सभी को प्यार,

वो पैगाम कहाँ से मैं लाऊँ?

दर्द न दे जो दूसरों को,

वो इंसान कहाँ से मैं लाऊँ?

दर्द ऐ दिल भुला दे जो,

वो ज़ाम कहाँ से मैं लाऊँ?

रात के अंधेरे में गुम न हो जो,

वो पहचान कहाँ से मैं लाऊँ?

जिसको हँस कर कभी गुजार सकूँ,

वो शाम कहाँ से मैं लाऊँ?


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