सन्नाटे की गूँज
सन्नाटे की गूँज
पसरा घना अंधियारा सब ओर ,
पर सूरज है आसमान में मौजूद वहाँ!
फिर क्यों फैली ये काली चादर?
काले धुएं का गुबार छाया यहाँ-वहाँ।
जल कर राख हो गई धरती,
इमारतें हो चुकी धराशाई,
परिंदा भी नज़र न आ रहा,
बची सिर्फ निर्जनता की परछाई।
मिसाइलों की तेज आवाजें,
बमों के सारे धमाके,
हो चुकी अग्नियों की वर्षा,
बचा नहीं कुछ, राख और अस्थियों के सिवा।
हँसता खिलखिलाता पूरा शहर,
ढह गया रेत के किले की तरह,
अब घूम रहा कराहती आत्माओं का पूंज,
और रह गई सिर्फ सन्नाटे की गूँज।
