STORYMIRROR

kanksha sharma

Others

4  

kanksha sharma

Others

जब सर्दी बोलती है

जब सर्दी बोलती है

1 min
223

सन्नाटा छा जाता है गलियों में,

जुगनुओं की आवाज़ गूंजती है,

अंगारों की तपिश महसूस होती है,

जब सर्दी बोलती है।

काँप जाती है हवा भी,

सूरज निकलने से डरता है,

पर तारों की चमचमाहट होती है,

जब सर्दी बोलती है।

बिछ जाती है बर्फ की चादर, छिप जाती है उनके तले नदियाँ,

पेड़ो की भी हड्डियां कड़कती हैं,

जब सर्दी बोलती है।

बंद कमरों में, कंबलों में सिमटे हुए,

ठिठुरन को दूर करते, अलाव को सेंकते हुए,

रात भी स्वयं जाकर सोती है,

जब सर्दी बोलती है।

बसंत का इंतजार करते हुए,

समुद्र भी सफेद आंचल ओढ़े हुए,

लहरों को भी कंपकंपाहट होती है,

जब सर्दी बोलती है।


Rate this content
Log in