हर साल कहानी बुनती है।
हर साल कहानी बुनती है।
समय पलटता, हर दिन बदलता,
नियति धूप-छाँव सी होती है,
कुछ हँस के कहना, कुछ रो कर सुनना,
हर साल कहानी बुनती है।
मुझसे पूछो, क्या मैंने पाया,
जिंदगी ने कुछ नया सिखाया,
हँस कर लड़ना, आगे बढ़ना,
मायूस हो तू क्यों रोती है?
हर साल कहानी बुनती है।
जो बिछड़ गए ना मिल पायेंगे,
हाथों से हाथ छूट जायेंगे,
ख्वाबों का सवेरा होगा एक दिन,
तू लोगों की क्यों सुनती है?
हर साल कहानी बुनती है,
जो मिल न सका वो मिल जाएगा,
तू अपने मुकाम तक बढ़ जायेगा,
कब तक उजाला दूर रह पायेगा,
तू हौसलों को क्यों खोती है?
हर साल कहानी बुनती है।
मंजिल तेरी अब दूर नहीं,
हारना तुझे मंजूर नहीं,
कल तक कर ले तू इंतजार,
जब दुनिया तुझसे झुकती है,
क्योंकि, हर साल कहानी बुनती है।
