स्वार्थी रिश्ते
स्वार्थी रिश्ते
बोलना कुछ चाहिए लोग आजकल कुछ और बोल जाते है
कभी रिश्ते अनमोल थे अब रिश्तों को दौलत से तौल जाते है
किसी अमीर के सामने गूंगी हो जाती है जबान
गर उड़ाना हो मज़ाक गरीब का तो गूंगे भी बोल जाते है
जो है मजबूत मचलते है उनसे करने को सभी बातें
जो दे वो आवाज़ नही देखते के दिन है या है रातें
ना हो जरूरत जिसे उस पर लुटाने को तैयार हैं सौगातें
बात जब हो जरूरत मंद की तो सिक्के खोले जाते हैं
भाई बना है आज यहाँ देखो अपने ही भाई का दुश्मन
बहनों मे भी इस दौलत ने करा रखी है देखो अनबन
परायों के साथ यहाँ सभी अपनी महफ़िल सजाते है
अपने भले ही रूठे रहें परायों को जा जा मनाते हैं
रिश्तों के बीच इस दौलत ने ऐसी लकीर खींची है
जिसे हमने देके नफरतों की आग सींची है
बहुत खुश होते है जब अपने लाचारी मे हाथ फैलाते है
क्यों हम चंद रुपयों के लिए अपनों को ही गैर बनाते हैं।
