मिथ्या प्यार
मिथ्या प्यार
जिसने कभी प्यार का दम भरा
उसने ही सीने पर वार किया।
दी थी जिसे कभी दिल मे जगह
उसी ने चाकू सीने के आर पार किया।
कैसा है ये प्यार कैसा माशूक है
प्यार मे कौन करता ऐसा सुलूक है।
प्यार मे तो जान देने की बात करते है
ये कैसे प्रेमी जो सीने पर वार करते है।
क्या इसे प्यार का नाम दिया जायेगा
जिसमे वहशियत की हद पार करते है।
वो मासूम सी कली माँ बाप की जान थी
उसका प्रेमी वहशी दरिंदा है इससे अनजान थी।
अल्हड़ सी उम्र मे क्या नादानी वो कर बैठी
पढ़ने की उम्र मे दिल किसी को दे बैठी।
दिल देने की कीमत उसने इस तरह है चुकाई
सरेराह इतनी भयावह मौत उसने है पाई।
कब तक लड़कियों अपनी बलि तुम यूँ चढ़ाओगी
कब तक वहशी दरिंदो से यूँ दिल लगाओगी
कब तक यूँ टुकड़ो मे तुम काटी जाओगी
मौत की रूह काँप जाये ऐसी मौत पाओगी
अब तो खुद को थोड़ा मजबूत तुम बनाओ
प्यार के नाम पर धोखा तुम मत खाओ
पढ़ो लिखो खुद की एक पहचान तुम बनाओ
नही हो तुम कमजोर दुनिया को ये दिखाओ।
हाथ जोड़ करती विनती हर माँ बाप से
मत दिखाओ बेटियों को सपने किसी राजकुमार के
दिखाने है अगर सपने तो दिखाओ अपनी पहचान के
दिखाने है अगर सपने तो दिखाओ आसमान के
तभी बेटियाँ इस संसार मे सुखी रह पायेंगी
जब मिथ्या प्रेम मे ना पड़ खुद को साबित कर पाएंगी।