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Sangeeta Aggarwal

Tragedy

4  

Sangeeta Aggarwal

Tragedy

खुद को अकेला करना पड़ा

खुद को अकेला करना पड़ा

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नफरतों के बाज़ार मे प्यार का एक दीप जलता रहा

इसलिए पथिक राह मे अकेला भी चलता रहा

यकीन तो सबको झूठ पर हो जाता बड़ी आसानी से

सच ही है जिसे तारीख दर तारीख खुद को साबित करना पड़ा।

जिंदगी कर जाती है कभी कभी यूँ भी शर्मिंदा हमें

एक हौसला ही है जिसके सहारे हर दरिया पार करना पड़ा।

ज्यादा बोझ से भी डूब जाती है अक्सर कश्तियाँ

इसीलिए बोझिल हो गये रिश्तो को हलका करना पड़ा।

सम्मान कमाने की ललक लेकर आये थे परायों के बीच

सच्चे होते हुए भी सम्मान से ही सौदा करना पड़ा।

जी हुजूरी की नही आदत रही हमें उम्र के किसी दौर मे

इसलिए खुद को सबके साथ होते हुए अकेला करना पड़ा।


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