STORYMIRROR

Vidya Sharma

Tragedy

4  

Vidya Sharma

Tragedy

सर्दी नसीब की

सर्दी नसीब की

1 min
340

सर्द रातों में ठिठुरती, अकड़ती,

 फुटपाथो पर सजी गुदड़िया।

 फटे कंबल में सिकुड़ी,

 कुछ छोटी - बड़ी जिंदगियां।

  

 सबके हिस्से में धूप कहां ? 

 ये बेरहम सर्दी नसीब की है।

 सरकारी अलाव अक्सर,

 जमती सांसो को गर्मी देते हैं।

  

अगहन हो या माघ,

 सोता कहां वो अभागा,

 ताकता है आसमां को

 और कोसता है विधाता को।

  

 शीतलहर में प्रतीक्षित रातें,

 किसी धनायढ़ के उत्सव के जूठन की,

 जो उखड़ती, लड़खड़ाती सांसों को राहत देती हैं।

  

 कितने ही सेठ और धनिको ने बांटे,

 अपने पश्चाताप के कंबल।

 फिर भी वो..

 शीतलहर की चिर निद्रा में सो गया।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy