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Vikas Shahi

Romance Tragedy

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Vikas Shahi

Romance Tragedy

प्रेम की अट्टहास

प्रेम की अट्टहास

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प्रेम कितना जोर जोर अट्टहास भर रहा है

भाग्य की विडंबना पर उपहास कर रहा है


वही विडंबना किस्मत पर आज फिर से है

समाज काल से प्रेम पर आघात फिर से है


मैं उफनती ज्वार सा फिर से आजाद प्रेमी

प्रेमिका वही सामाजिक बंधन पर गुमनामी


हृदय पर एक साथ गुलाब और कांटा उगा है

नाराज जुबान भी अरमानों पर ताला लगा है


कितना प्रेम सौंदर्य एहसासों पर उमड़ा है

प्रेमिका की मुस्कराती मुखड़े पर दौड़ा है


अहा! बिल्कुल जैसे सपनों में सजाया था

स्वर्ण की चमक जिसपर सौंदर्य आभा था


वही रूप  में गुण में प्रेम  की प्याली सी

चांदनी सी शीतल पर सूर्य की लाली सी


उसकी मजबूरियाँ  ने जब अंगड़ाई  ली है

मन और हृदय बीच दुविधा लड़ाई ने ली है


काश होता न समाज और ऐसा बेरंग शहर 

प्रेम और बदनामी का संयोग न बनता जहर


भावना आहत से क्यों प्रेम उस शहजादी से

कैसी रे किस्मत कठोर बना है मेरी बरबादी से


जीवन के मोड़ आज कैसे अनुभव भर रहा है

प्रेम देकर अश्क से भी एक परिचय कर रहा है


प्रेम कितना जोर जोर अट्टहास भर रहा है

भाग्य की विडंबना पर उपहास कर रहा है


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