~स्वयं के अंदर ढूंढे मन निज~
~स्वयं के अंदर ढूंढे मन निज~
स्वयं के अंदर ढूंढे मन निज के
जैसे पात पियत जल पंकज के
प्यासा फंसे मध्य समंदर कहीं
करि खूब विनती प्रस्तर सम ही
चाहत की मुठी में रेत अड़े ऐसे
चीनी रोगी के हाथ में पेड़ा जैसे
बिन किस्मत जीत है ललचायी
उम्मीद गूंगा से बात को लगायी
छुई मुई के सम स्वप्न देख हरषे
लगे जेठ में काली घनघोर बरसे
दरिया पार हो कश्ती कागज के
स्वयं के अंदर ढूंढे मन निज के।