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Akhil Bardhan

Abstract

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Akhil Bardhan

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बदलते रिश्ते

बदलते रिश्ते

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रोज बदलते हैं रिश्ते दिल के

रोज़ यहा एहसास बदल जाते हैं


बदलते मौसम की तरह आज कल

लोगों के ख़यालात बदल जाते हैं


अजनबी हो जाते हैं पल भर में

जन्मों के साथी

लम्हों में यहा अपनों के

जज़्बात बदल जाते हैं


ढल जाए शाम तो

साया भी साथ नहीं देता

चमके जो क़िस्मत का सितारा

तो ग़ैरों के भी अन्दाज़ बदल जाते हैं


मंज़िल पर पहुँच कर

ये मालूम होता है

मुश्किल राहों पर ना जाने कितने

हमराज़ बदल जाते हैं।


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