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Akhil Akhil

Inspirational

4.7  

Akhil Akhil

Inspirational

नजरिया

नजरिया

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जो थक गया चलते हुए, और खुद से जो नाराज़ है

जिसको गिला खुद से है ये, कि वो नहीं कुछ खास है

उसको दिखावे के जहां में, इक दोस्त बढ़िया चाहिए

और ज़िन्दगी को देखने का इक नज़रिया चाहिए


वो है नहीं तुझ सा यहां, कुछ है अलग, कुछ है जुदा

उसको तू ऐसे देख मत, उसमें भी बसता है ख़ुदा

ना दे उसे तू हिदायतें, जिसे साथ तेरा चाहिए

और ज़िन्दगी को देखने का इक नज़रिया चाहिए


कुछ लोग हैं ऐसे यहां, बिन बात जो मशहूर हैं

कुछ हैं बढ़े ख़ामोश से, जो शौहरतों से दूर हैं

शौहरतों की होड़ में, ईमान बढ़िया चाहिए

और ज़िन्दगी को देखने का इक नज़रिया चाहिए


वो थी बढ़ी मासूम सी, कोमल सी थी वो इक कली

आंखों में लेकिन खौफ़ है, कांटों से शायद घिर गई

तेरे प्यार का सागर नहीं, अब हक का दरिया चाहिए

खुद के लिए उसको तेरा बदला नज़रिया चाहिए

और ज़िन्दगी को देखने का इक नज़रिया चाहिए !


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