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Nand Kumar

Abstract

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Nand Kumar

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आए बदरा

आए बदरा

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उमड़ घुमड़ कर आए बदरा,

प्यासी धरती पर छाए।

चातक के मन को भाकर के, 

सबकी प्यास बुझाए।।


नयी चेतना तरुवर पाई 

दादुर गये हरषाई ।

नदी तडाग हुए जलमय, 

देखो बर्षा ऋतु आई।।


ताप नसाया सब जीवों का 

शीतल मलय समीर वही।

पाकर परस मिटी सब पीड़ा 

आल्हा की रस धार वही।।


पशु को तृण मानव को अन्न 

यह मेघों का उपहार है ।

वर्षा बिन सब जग सूना यह

प्रकृती का श्रृंगार है ।।


हरी भरी धरती लहराई

मगन सभी नर नारी ।

जय हो जय हो वरुण देव

हम सब तेरे आभारी।।


नभ में सतरंगी आभा ले

इन्द्रधनुष मन भाया।

वर्षा कन्या को उसने है

सुन्दर चीर उढाया।।


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