नदियां
नदियां
नदिया अरु जीवों का नाता जग में अति प्राचीन ।
नदियों के तट पर ही विकसित हुए हैं नगर नवीन ।।
शुद्ध मधुर जल से सिंचित हो फसलें हैं लहराती ।
पशु पक्षियों को जल देकर उनकी प्यास बुझाती ।।
धार्मिक औद्योगिक सारे ही नगर हैं इनके तट पर ।
धर्म और व्यापार को गतिमय करतीं नदियां भू पर ।।
इनके ही गहरे जल में हम नावों पर विचरण करते ।
होकर मगन ह्रदय में अपनें अतुलित सुख को भरते ।।
बङे बङे बांधों पर इनके जल से ही है विद्युत बनती ।
विविध यन्त्र चलते उससे वह जग के तम को हरती ।।
नदियों से ही नहर बनाकर दूर दूर जल को ले जाते ।
जल संकट से जूझ रहे क्षेत्रों में जलधारा ले आते ।।
हम सब जग के मानव को नदिया है यह बतलाती ।
कोमल ह्रदय सरस हो वाणी गतिमय रहना सिखलाती ।।
सीमाओं में रहो सदा मत सीमा को अपनी तुम तोङो ।
तृप्त नदी सा करो सभी को सब को आपस में जोङो ।।
नदी नीर से बनकर हे नर परहित में सुख को पाओ ।
रुको न क्षण भर बहो निरन्तर सब को सुख पहुंचाओ ।।