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Manju Saini

Inspirational

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Manju Saini

Inspirational

शीर्षक:अभ्युदय मिलन का

शीर्षक:अभ्युदय मिलन का

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डूबते सूरज को देख आज

कितनी बार डूबी मैं तेरी यादों में

कहीं एक आस सी लिए मन में

सोचती रही कि अभ्युदय होगा पुनः

सूरज की तरह ही मेरा भी मिलन होगा

वैसे ही जैसे रात्रि के मिलन के बाद 

उदिता से मिलने सूर्य का आगमन होगा

मेरे अंदर यादों का गुबार घुमड़ रहा था

कितने अरसे से सूरज ऐसे ही मिलन करता है

अपनी रात्रि से मिलन को चल देता है

पुनः आने का वादा कर अपने समय पर

कभी नहीं हुआ कि न उगा हो 

निशा से अलग होकर प्रतिदिन

अरसे से चक्रादिचक्र क्रमशः यूँ ही

अपनी गति से आवागमन करता आ रहा है

वैसे ही आज भी प्रतीक्षारत मैं खोजती सी

मानो छोड़ आए तुम्हें पुनः मिलन को

लगता हैं मानो शरीर की शक्ति छूट गई

पीछे कहीं पुनः मिलन को

आज रेत के  टीले पर खड़ी मानो यादो का

ताबूत ही मेरे सामने खुल सा गया हो

यादों की सुखद खुशबू में मदहोश सी मैं

बैठ बनाती रही रेत का घरौंदा सा 

साथ लिए वही यादें मानो रेत के टीले पर ही

जिन्दगी भर के लिये बन जायेगा रेत का घरौंदा मेरा

देखते ही देखते ढह गया रेतीला बनाया घर

मानो स्मृति टूट ही गई मेरी तो

टुकड़े-टुकड़ेदेखती रही यादों के बहाव को

डूबते सूरज सा चमक बिखेरता हुआ



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