उर में प्रश्नों का दबाव
उर में प्रश्नों का दबाव
उर में लिए अनगिनत प्रश्नों का दबाव ;
हुआ विदिर्ण अब मानव स्वभाव !
आज नहीं तो कल ऐसा ही होगा ;
प्रश्नों का भाव कुछ और मुखर होगा !
जीत होगी सच्चाई और नैतिकता की ;
अर्धकुण्ठित मानसिकता बदलेगी !
कपटी छद्मवेशधारी दुम दबा भागेंगे ;
एक एक कर झूठ की परतें उघढ़ेंगी !
एक दिन ज़रूर खुल जाएंगे उनके भेद ;
न्याय ध्वज़ फहराया करेगा लक्ष्य प्रभेद !
सीधे सरल हृदय के लोगों का भाईचारा ;
सम्प्रदाय द्वेष खत्म हो एक धर्म हमारा !
सच्चे लोग मानवता के,सच्चे साधक होंगें ;
अन्तर्मन के क्षोभ निःशंक ना बाधक होंगे!
मन की सारी कालिमा धुल जायेगी ;
मन मंदिर सा पावन और निर्मल होगा !
ख़ुशहालियों का सर्वत्र आश्रय होगा ;
हरेक मन में साहस धैर्य का संबल होगा !
सेवा किया करेंगे पुज्यनीय मात पिता का ;
परम दुष्टों का होगा पल में हार संहार !
निश्चय मन में उपजेगी आध्यात्मिक धारा ;
मानवता की सेवा से चमकेगा सितारा !
