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Azad Ji

Inspirational

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Azad Ji

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कविता

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हे मन मित्र मेरे


हे मन मित्र मेरे 

जब भी मैं राह भटकूं,

ग़लत दिशा को जाऊं,

तुम धिरे से टोक देना,

हां मुझे रोक देना,


जैसे प्रभु राम ने,

रावण को समझाया,

दूत भेज भर सक बुझाया,

ना समझा ना बुझा,

रावण दस सिर कटवाया,

लंकापति लंका में अग्नि धधकाया,

पुत्र समेत कुल नाश किया,

वहीं विभीषण प्रभु संग वास किया,

राज दीन्ह प्रभु ताज दीन्ह,

विभीषण को सर्व काज दीन्ह,

सुग्रीव को राज दिलवाया,

प्रभु कृपा बाली ने मोक्ष पाया,


जब भी कहीं मैं अटकुं,

सही ग़लत तय ना कर पाऊं,

तुम धिरे से राह दिखाना,

हां मुझे आईना दिखाना,

जैसे श्री कृष्ण ने,

अर्जुन को मार्ग दिखलाया,

कर्म पथ पे चलना सिखलाया,

मोह माया से मुक्त कराया,

बंधन काटी रुप दिखलाया,

सारथी बन स्वारथ दूर किया,

निज मन पांडव अकारथ दूर किया,

हे मन, मित्र मेरे!

तुम सत्य को चुनना,

सत्य में रहना,

सत्य में जीना,

सत्य को पाना,

सत्य हो जाना,

हां सत्य हो जाना



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