इश्क़-ए-वतन
इश्क़-ए-वतन
इश्क़-ए-वतन कोई इक दिन का काम नहीं, वतन से इश्क़ के सिवा दूजा कोई काम नहीं।
(हर किसी के दिल में ऐसा हो कोई आम नहीं।)
फ़ौजी सरहद में रहे या अपने परिवार के साथ,
वतन पर कोई आँच आए ऐसा कभी सोचा ही नहीं।
जो ऐसी सोच रखे वो वतन का वफ़ादार नहीं,
वतन से इश्क़ करना है ये कोई कारोबार नहीं।
राष्ट्रीय त्यौहार मनाया फिर भी जी अभी भरा नहीं,
ताज़िंदगी वतन के लिए दिल धड़के पर हक़ अदा नहीं।
वतन से बगावत की जो बात करे उससे बुरा कोई नहीं,
दुश्मन-ए-वतन हैं जो उससे हमारा कोई ताल्लुक़ नहीं।
वतन के लिए लहू भी बहे तो हमें कोई ग़म नहीं,
हिंदोस्तां में हैं हम ये हमारे लिए फ़ख्र से कम नहीं।
मज़हब भी सिखाता है हमें वतन से इश्क़ करना,
फिर भी जो ख़िलाफ रहे उसका कोई धर्म नहीं।
जहाँ में देश, भाषाएँ व संस्कृति ये सब भी हैं कई,
"रहमान बाँदवी" लेकिन हिन्दोस्तां के जैसा कोई नहीं।
