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Abdul Rahman Bandvi

Others

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Abdul Rahman Bandvi

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लड़की/स्त्री

लड़की/स्त्री

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लड़की की जिंदगी कुछ आसान नहीं होती

बचपन से जवानी तक संघर्ष से लड़ रही होती।


शारीरिक उतार-चढ़ाव का दुःख भी झेल रही होती,

लेकिन हो रहे परिवर्तन को बताने से कतरा रही होती।


शादी के बाद चूल्हा-चौका ही करना जैसी बातें हो रही होती,

मायके पर तेरा कोई हक नहीं ऐसी भी चर्चा सुन रही होती।


लड़की है तुझे ज्यादा पढ़कर क्या करना ऐसा सुन रही होती,

ज्यादातर लड़कियाँ शिक्षा के आभाव में ही पल-बढ़ रही होती।


ससुराल पहुँची तो पराई लड़की है ऐसा संबोधन सुन रही होती,

लड़की मायके से ससुराल तक के सफर में कशमकश में जी रही होती।


शादी के बाद वो दो घरों में सामंजस्य बनाकर रह रही होती,

अक्सर मायके व ससुराल दोनों पक्षों की सुन रही होती।


औरत की दिनचर्या काम-काज व बच्चों में व्यतीत हो रही होती,

सास,नंद,पति व देवर के नोंक-झोंक को भी सह रही होती।


जिसने जो कहा व मांगा उसको पूरा करने के लिए तत्पर रहती,

खुद के सुख को नजरअंदाज कर सभी को ख़ुश करने में लगी रहती।


आख़िर वो कुछ समय के लिए आराम करने लगी तो भी दिक्कत हो रही होती,

आख़िर सोचो कि वो कब अपने लिए भी कुछ कर रही होती? 


फिलहाल किसी की भी जिंदगी आसान होती और नहीं होती,

"रहमान बाँदवी" सोच का ये फर्क है बाकी सभी अपने किरदार को निभा रहे होते।


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