मजदूर हैं हम और हमें क्या ..?
मजदूर हैं हम और हमें क्या ..?
मजदूर हैं हम और हमें क्या चाहिए?
बस वही, बस वही मजदूरी चाहिए।
काम हम तो जी भर कर करते हैं ,
काम करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं ।
मेहनत करते हैं, मजदूरी करते हैं,
दो वक्त की रोटी के लिए न जाने क्या क्या करते हैं?
मजदूर हैं हम और हमें क्या चाहिए?
बस वही, बस वही मजदूरी चाहिए।
न दिन देखते, न रात देखते हैं,
हर वक्त बस हम काम देखते हैं।
मेहनत मशक्कत कर अंजाम देते हैं ,
परिवार के लिए हम तो जान देते हैं।
मजदूर हैं हम और हमें क्या चाहिए,
बस वही, बस वही मजदूरी चाहिए।
चिलचिलाती धूप में जब हम काम करते हैं,
तब महलों में रहने वालों के लिए महल बनाते हैं ।
न तन पर ढंग का कपड़ा, न ही कोई छाया करते हैं,
बस काम कराने वालों के हुक्म की तामील करते हैं ।
मजदूर हैं हम और हमें क्या चाहिए?
बस वही, बस वही मजदूरी चाहिए।
पैरों में चप्पल नहीं पर मीलों दूरी तय करते हैं,
पसीने से तरबतर होकर जब हम घर पहुंचते हैं।
बच्चों को खुश देख सब दुख दर्द भूल जाते हैं,
जिंदगी का गुजर बसर बस झोपड़ी में करते हैं।
मजदूर हैं हम और हमें क्या चाहिए?
बस वही, बस वही मजदूरी चाहिए।
हम मजदूरों के भी दिल में कुछ अरमान हुआ करते हैं,
कुछ सपना पूरा किया और कुछ का गला घोंट जाते हैं।
पसीना सूखने से पहले भला मजदूरी कौन हैं जो देते हैं?
"रहमान बांदवी" बताए हुए हुक्म पर अमल कौन करते हैं?
