ज़िन्दगी – परत दर परत
ज़िन्दगी – परत दर परत
परत दर परत,
ज़िन्दगी तुम,
मजबूरियों से मुझे
ज़नझोड़ते रहो,
मैं भी,
परत दर परत
उनसे उभरता रहूंगा,
खामोशी से सही,
मगर हर तकलीफ़ से लड़ता रहूंगा,
ज़िन्दगी आखिर,
इक कश्मकश की दास्तां ही तो है,
जिस में खुशी और गम,
का आना जाना लगा रहता है,
बस मैं अडीक,
परद दर परद, इस से उभरता रहूंगा।।