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Chandni Purohit

Abstract Inspirational

4  

Chandni Purohit

Abstract Inspirational

वर्षोंपरांत

वर्षोंपरांत

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वर्षोंपरांत मन में छिड़ा आज कोई द्वन्द है 

रूह होकर भी पास मेरे से बहुत तंग है 


अनिश्चित काल में समा रहे हो असंख्य तारे बनकर 

मैं ढूंढ रही हूँ सिर्फ तुमको तलाश-ए-मोहब्बत सनम 


क्यूँ ग़म मिला मुझको दर्द सिर्फ तेरी जुदाई का ये 

देश प्रेमी दिल था तेरा आज धड़कने मेरी मंद हैं 


लौट जाने को होते अगर कुछ पल पास में मेरे 

थाम लेते वो हाथ जो डगमगाये थे बढ़ाने की ओर तेरे 


अब होता क्या होगा खुदा के पास कोई शहर शहीदों का 

वतन पर जान लुटाने वालों के परिवार और अपनों का 


वर्षोंपरांत मन में छिड़ा आज कोई द्वन्द है 

रूह होकर भी पास मेरे से बहुत तंग है 


दोस्ती के भेष में दुश्मनी गुलदस्ता था जो कभी 

आज वो भी तेरे जज्बे पर कायल हो रहा फेल है 


क्यूँ होकर के इर्द-गिर्द मेरे दिखता नहीं तू श्वेत है 

है कहीं तू या है नहीं क्या सब मुकद्दर का खेल है 



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