मुअम्मा
मुअम्मा
अवसाद से ग्रसित तू मौन है,
सब में ढूंढे ख़ुद आखिर तू कौन है
चाह रहा रहना यहाँ भी चाह रहा रहना वहाँ भी
अनगिनत किस्से असंख्य लोग भाँति भाँति की कौम है
ना पकड़ना दामन किसी का तुम ना बनाना पुलिंदा ख़्वाबों का
दिखता जो सच्चा समूह है हर शख्स जुदा आपस में न इनके मोह है
दया का भाव बेहिसाब मोहब्बत रंग रूप इनका सब ढोंग है
मन में कपट और गुमान फिजूल का झूठा इनका रोम रोम है
अवसाद से ग्रसित तू मौन है,
सब में ढूंढे ख़ुद आखिर तू कौन है।