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Chandni Purohit

Abstract Romance

4  

Chandni Purohit

Abstract Romance

मुकम्मल मोहब्बत की दास्ताँ

मुकम्मल मोहब्बत की दास्ताँ

2 mins
307


यादें रह गयीं हैं उनकी बाकी बातें अब आम हो गयी 

सुबह को आयी थी और पता न चला कब शाम हो गयी 


इश्क़ करना बुरा था या अधूरे इश्क़ पर ज़ोर न चला 

वो सच्चे ज़ज्बात पिरोते गए और हमसे खता हो गयी 


सब एक जैसे होते हैं आज यहाँ तो कल कहीं और खोते हैं 

मुक़द्दर बुरा था हमारा या क़िस्मत की उनसे एक दिन बात हो गयी 


जो शुरू हुआ था सिलसिला वार्तालाप का थमने का कोई इरादा न था 

उस दौरान दो दिलों की आपस में धड़कने एक साथ हो गयी 


बेख़बर थे हम न समझ पाये कैसे कोई इतना अपनत्व दिखाता है 

जब कभी चोट हमें लगी तो आंखे उनकी बहुत लाल हो गयी 


समय रहते समझ पाने की उस वक़्त सही समझ ही नही थी 

देखते ही देखते वक़्त के साथ साथ कोई उनकी संगिनी हो गयी 


वो वक़्त नहीं था थमने का अभी हमें और आगे बढ़ना था 

हम लौट आये रास्ते से दिलचस्पी हमारी भी थोड़ी कम हो गयी 


कुछ खुद के लिए करना था कुछ अपनों को करके दिखाना था 

यकायक देखा हमनें रास्ते में उस रोज रुबरु वही नजर हो गयी 


रुके पल के लिए दोनों ही लेकिन इस बार ज़ज्बात हमारे थे 

वो आज भी आशिक थे हमारे क्यूँ आज देख उन्हें आंखे नम हो गयी 


फिर से वही कशिश और दिल में नया सैलाब उमड़ कर आया था 

भूल पाना नामुमकिन होता है यह सोच मोहब्बत तो कैसे कम हो गयी 


जो कभी पूरा पूरा था हमारा उनके सात जन्म किसी के नाम थे आज 

दिल पे ना जोर होता किसी का इस बार आंखे भी अश्रु विहिन हो गयी 


सच कहते हैं पहला प्यार कभी हांसिल नहीं होता लेकिन प्यार उसी से होता है 

मोहब्बत क्या होती है इसकी अब हमें मुकम्मल जानकारी जो हो गयी 


सुबह को आयी थी और पता न चला कब शाम हो गयी 

यादें रह गयीं हैं उनकी बाकी बातें अब आम हो गयी।


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