जिंदगी और क्या है
जिंदगी और क्या है
मानो तो खुली किताब नहीं तो बंदिशें बहार हैं
मानो तो बहता नीर नहीं तो रुकावटें हज़ार हैं
एक गुंबद की तरह बंद हैं मन की अनेकों भावनाएं
मानो तो एहसास हैं कई नहीं तो राज ही राज हैं
घूम रहे जन्तु गाड़ी में पास दौलत जिनके बेशुमार है
दाने दाने को तरसे कुछ जन कुछ दान के मोहताज हैं
दिन रात दौड़ धूप करता मनुष्य चंद पैसे मिले रोजगार है
परिवार बच्चे तरस गये देखने को मिलता न एक अवकाश है