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Chandni Purohit

Abstract Inspirational

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Chandni Purohit

Abstract Inspirational

ज़ख्मी मन

ज़ख्मी मन

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 जो मन में है, पल विहीन, संग उसके फिर जुडाव कैसा 

न रूह को सुकून, चंद वाक्यान "संगी" का खिताब कैसा


दिलों की तकरार बनावटी व्यवहार हाय रब्बा ये भेदभाव कैसा 

है! मोहब्बत न हुआ इज़हार, फिर नफ़रत और द्वेष से इंकार कैसा 


जो उलझन है, मुस्कुराहट झूठी, अंदर का मेरे यह हाल कैसा 

लब खामोश, हँसते ज़ख़्म, अपनेपन का ये इश्तेहार कैसा 


बेरूखी जिंदगी, प्रतीत अकेलापन फिर बसाया दोनों ने संसार कैसा 

सिमट़ते ज़ज्बात, आतिशबाज़ी शब्दार्थ संग जीवन का इस्तक़बाल कैसा 


जो ध्वनि रहित है, शून्य संकलित, प्रेम का यथावत संवाद कैसा 

अनिश्चित रूप सा, प्रारूप प्रदर्शित आया जीवन में यह भूचाल कैसा।


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