Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Ratna Kaul Bhardwaj

Abstract

4.7  

Ratna Kaul Bhardwaj

Abstract

कुछ दबा हुआ याद आया

कुछ दबा हुआ याद आया

1 min
282


आज फिर से दिल ने दस्तक दी

यादों को फिर किसी ने जगा दिया

दिल फिर सहमा सहमा सा है

जाने क्यों कुछ दबा हुआ याद आया


एहसासों में है मची खलबली

अरमानों का है सैलाब आया

पतझड़ के पत्तों की तरह

सपनों को फिर कोई जगा आया


यह क्या! जिन ख्वाहिशों को

मैंने खुद ही था कफन ओढ़ाया

मुड़कर उन्हीं ख्वाहिशों ने

एक इल्ज़ाम तले फिर दबाया


छुपा रखे थे वो अश्क मैंने

ज़माने ने जिन पर था हिसाब लगाया

मैंने नफा-नुकसान न सीखा था

इसलिए पाया कम ज़्यादा गवाया


मलाल नहीं ज़माने की रंजिश का

ज़िन्दगी में जो पाया, बस पाया

पर रिवायतों से न आज़ाद हुई

बेड़ियों ने हर बार बहुत तड़पाया


यह बेड़ियां तब भी थी मौजूद

जब मेरी मासूमियत को था झुलसाया

वक्त न जाने कहाँ ठहर गया था

जब मेरी शख्सियत को औरों ने था दबाया


अभी भी ख्यालातों की कैद में हूँ

चाहतों को न कभी मैने आज़माया

सोचती हूँ ज़ाहिर कैसे करे कोई

वह जज़्बात जिन्हें औरों ने है दबाया


अभी अभी एक दबी आवाज़ ने

मेरे जेहन को थोड़ा थपथपाया

ज़िन्दगी नश्वर है, खुद के लिए भी जी

तेरा वजूद ही है, तेरा असली सरमाया


बस अब पर चाहिए परवाज़ के लिए

नीले आसमान ने भी आज उकसाया

समाज, रिवायतें, बेड़ियाँ, सही है, पर

जीस्त जीने का मकसद अब समझ आया......



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract