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deepak gupta

Abstract

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deepak gupta

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जीवन रेखा एक पहेली

जीवन रेखा एक पहेली

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कितनी लम्बी जीवन रेखा

शनै: शनै: बस कटते देखा,

आया ज्वार व मिट गई रेखा

कितनी लम्बी किसने देखा,


हाथ की रेखा जितनी लम्बी?

किसे पता है कितनी लम्बी,

अभी किनारा बड़ा सुदूर

कितने पास व कितने दूर,


सागर की वह लहरे गिन लो

शायद उत्तर छिपा है इसमें,

भवसागर में जन्म मरण का

लेखा जोखा सारा जिसमें,


कोख में पलती नयी जिंदगी

इस जीवन के बाद निखरती,

परम पूज्य परमात्मा जिसमें

प्राण सुधा की वर्षा करते,


किलकारी कितनी मनमोहक

नई चेतना इसका द्योतक

नया रूप है नई जिंदगी

मात पिता की छाप है पूरक


रेखा ने भी बदला रूप

नई पहेली नया स्वरूप,

युगों युगों से चली आ रही

है अनन्त यह जीवन रेखा।



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