प्रेम की पराकाष्ठा
प्रेम की पराकाष्ठा
देखो तुम मन की आंखों से
समझो प्रेम की भाषा,
जिस साथी से जोड़ा था
जीवन भर का नाता,
कितने दूर व कितने पास
अब नहीं रहा मधुमास,
जोड़ो फिर से मन से मन को
तभी बुझेगी प्यास,
बनो न इतने निष्ठुर अब
तुम झांको अपनी ओर,
मिल जाएंगे उत्तर सारे
बांधो प्रेम की डोर ,
थोड़ा धीरज थोड़ा संयम
बोलो मीठे बोल ,
धीरे धीरे लौट आएगा,
वही नया संसार
