STORYMIRROR

deepak gupta

Tragedy

4  

deepak gupta

Tragedy

नई पहचान

नई पहचान

1 min
6

जीवन में आते हैं कुछ पल

छूटा प्रियजनों का साथ,

बोझ बिछुड़ने का अति भारी

बन जाता मन भी अति दुर्बल,


मन की व्यथा नयन का भरना

है स्वाभाविक हृदय वेदना,

बहने दो अश्रु धारा को

कर लो अपने मन को निर्मल,


दो जीवन को नई दिशा अब

टुकड़ों को जोड़ो तुम फिर से,

बदला मौसम बदलो तुम भी

अंतर्मन को करो सशक्त,


ढूंढो एक नई पहचान

मिल जाएगा जीवन दान,

ढूंढो एक आयाम नया

कर लो तुम राहें आसान,



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy