पावन-चरण।
पावन-चरण।
गुरु के" पावन-चरणों" को, चित्त में अपने जगह देना है।
मिल सके अगर चरण रज तुझको, माथे पर अपने लगा लेना।।
" रामाश्रम" है पतित पावन गंगा, क्षण भर में पावन कर देती है।
अंधकार मिटा प्रकाश है भरता, संकटों से मुक्ति तुम पा लेना।।
संतों के मुखार बिन्दु से, निकलती जो अमृत वाणी है।
हृदय- पटल ऐसे खुल जाते, तनिक समय तो तुम दे देना।।
करना नहीं कुछ पड़ता तुमको, इतनी सरल युक्ति बतलाते हैं।
मल आवरणों का पता नहीं चलता, बस थोड़ा ध्यान लगा तुम लेना।।
कृपा दृष्टि सब पर है होती, जो भी चरणन ध्यान लगाते हैं।
छल-कपट का वहाँ कोई काम नहीं, निर्मल हृदय तुम कर लेना।।
सार जगत का वो हैं बतलाते ,करते सब की वो सेवा हैं।
प्रेम भाव अन्तर में हैं भरते, पर-सेवा तुम भी कर लेना।।
गुरु ही ब्रह्मा, गुरु ही विष्णु, गुरु ही महादेवा हैं।
" नीरज "तू क्यों चक्कर में पड़ता, गुरु पर ही सब कुछ छोड़ देना है।।
