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Dr J P Baghel

Tragedy

4  

Dr J P Baghel

Tragedy

दोहे सुल्तानी -४

दोहे सुल्तानी -४

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मंडी में बिकने लगें, स्त्री-पुरुष जवान 

पूंजी पर बैठा यही, चाह रहा सुल्तान ।१


भय के बदले प्रीत की, खोली एक दुकान 

राज-दंड को थाम कर, बैठा है सुल्तान ।२


खुद के असफल काम से, दूर हटाने ध्यान 

दोष दूसरों के हमें, गिना रहा सुल्तान ।३


कब्जे में सारे किए, वैधानिक संस्थान 

न्याय नीति के दायरे, तोड़ रहा सुल्तान ।४


कहा कि चौकीदार हूं, लिया सभी ने मान 

निकला चौकीदार ही, चोरों का सुल्तान ।५


रोजगार जब छिन गए, हुआ हमें तब ज्ञान 

"मैं खाने दूंगा नहीं", बोला था सुल्तान ।६


उन्हें आपदा में हुई, अवसर की पहचान 

जिनके प्रति अनुकूल था, भारत का सुल्तान ।७


छोड़ो प्रेम, चलाइए, नफरत का अभियान 

ताकि सहज बैठा रहे, गद्दी पर सुल्तान ।८


जिसे ज्ञान हो, सच कहे, ले लो उसकी जान 

निडर घूमिए कुछ नहीं, बोलेगा सुल्तान ।९


हटा रहेगा जब तलक, रोटी पर से ध्यान 

समझो अपराजेय है, तब तक वह सुल्तान ।१०



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