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Sushma Tiwari

Abstract Tragedy Inspirational

4  

Sushma Tiwari

Abstract Tragedy Inspirational

शाश्वत सत्य

शाश्वत सत्य

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मुझे अब भी स्पष्ट स्मरण है

विशद रूप से वे शांत नेत्र, 

इंद्रधनुषी रंगों को समेटे हुए 

प्रेम और आनन्द से भरीं हुई, 

सब कुछ स्पष्ट कहती हुईं कि 

तुम भी एक वृक्ष बन सकते हो। 


 हाँ तुम एक पूरा वृक्ष बन जाना 

 या ज्ञान का एक पन्ना ग्रहण कर लेना 

 वृक्ष के पर्णों की किताब से। 

 फिर वहीं स्थिर खड़े रहना, 

 खुले गगन में शाखाओं को फैला कर 

 हर्षोल्लास की गिलहरी को खेलने देना। 


 सुनो! तुम एक वृक्ष हो सकते हो, 

 फिर थोड़ी देर के लिए 

 अपनी जड़ों के मध्य विश्राम करना। 

 पैरो को मिट्टी में दबा कर 

 उनकी उंगलियों को घुमाना, 

 चेहरे पर सूरज की किरणें आती होंगी 

 वहीं रहना बनकर एक प्रहरी

 अंत: वन में पक्षियों का गीत सुनते हुए।


हाँ प्रयत्न किया था मैंने 

किसी निरीह वन में वृक्ष होने की, 

परंतु प्रकृति के शिकारी घात लगा बैठे। 

उन्मादी आकांक्षाओं जनित बाढ़ के प्रवाह में 

बह गए मेरी जड़ों से मिट्टी के प्रत्येक कण। 

मेरे अश्रु पूरित नेत्र याचना करते रहे, 

वसंत ऋतु नहीं तो मध्याह्न तक का भी अवसर? 

ओह! यह विस्मृति कैसे हुई? 

प्रकृति का रुदन यहां कौन सुनता है? 

सुनकर भी प्रत्येक जन मौन चुनता है। 



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