आकाश
आकाश
विस्तृत वृहद विशाल विलक्षण
अद्भुत अप्रतिम असीमित आकाश
रंगभूमि सा रंगीन कभी, उष्णकाल में,
रवि का रमण स्थल बन जाता,
कभी रूद्र रूप धर जल बरसात,
रचनाकारों का रसिक आकाश।
धूल धुंआ धुन्ध से मनुज ने भर दिया,
आक्रंदित खग अब खण्डहर आकाश,
जाने श्रापित प्रजाति मनुज की,
छू लेते नष्ट नीर धरा अब नष्ट आकाश।
सूक्ष्म सोच है किन्तु ज्ञान तो इतना होगा ही,
कल्पना में डूबे कथाकार, चाहे कविश्रेष्ठ कवि,
प्रेम रस में लिखेंगे कैसे, जो विलुप्त हो जाए
तारों का प्रांगण, वो चंद्रमा की चादर आकाश?
