STORYMIRROR

Mukesh Kumar Modi

Abstract Tragedy Inspirational

4  

Mukesh Kumar Modi

Abstract Tragedy Inspirational

दैवी दुनिया बनाओ

दैवी दुनिया बनाओ

1 min
394

सारे संसार का खेल चमड़ी के पीछे ही चल रहा

इसके ही आकर्षण वश मानव खुद को छल रहा


भूल गया आत्म स्वरूप को बना देह का गुलाम

दिव्य गुणों का इसीलिए मिट चुका नाम निशान


ढेरों साधन बना रहा वो चमड़ी को चमकाने का

किन्तु काम भूल गया वो चरित्र को दमकाने का


चेहरे की झुर्रियाँ देखकर वो चिंतित हुआ जाता

लेकिन चरित्र का सिकुड़ना उसे नजर ना आता


चेहरे पर दिखते धब्बों का उपाय खोजता जाता

आत्मा पर लगे विकारों के वो दाग देख ना पाता


अपनी जाति ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र बतलाता

लेकिन चमड़ी के दास को चमार ही कहा जाता


ये चमड़ी की दासता ही बुद्धि में उत्पात मचाती

काम वासना जगाकर संसार में विकार फैलाती


चर्म की सुन्दरता के पीछे बुद्धि को नहीं भगाना

इस विकारी आकर्षण से खुद को मुक्ति दिलाना


चरित्र की सुन्दरता के प्रति अपना ध्यान लगाना

दिव्य गुणों को धारण करके गुण मूरत कहलाना


सर्व गुण सम्पन्न बनकर जीवन में समृद्धि लाना

चमारों की नगरी को फिर से दैवी दुनिया बनाना


*ॐ शांति*


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract